अमेरिका के चुनाव कहने के लिए तो अमेरिका में होते हैं, परन्तु सुदूर देश में होने वाले चुनावों में चर्चा भारत में उतने ही उत्साह से होती है, जितने उत्साह से भारतीय चुनावों की होती है। भारत में रहने वालों को नेपाल और पाकिस्तान और यहाँ तक कि श्रीलंका, बांग्लादेश में कितने विपक्षी दल हैं और कौन मुख्य नेता हैं, शायद ही किसी को पता हो। परन्तु अमेरिका में राष्ट्रपति कौन बनेगा यह जानकारी सभी को होती है और चर्चा हर तबके में होती है। पिछली बार के अमेरिका के चुनाव किसी को भूले नहीं होंगे जब भारतीय लिबरल पत्रकारों ने जाकर हिलरी क्लिंटन को लगभग जीता हुआ ही घोषित कर दिया था। उन्होंने भारत में और अमेरिकी भारतीयों में हिलेरी क्लिंटन के पक्ष में जो अभियान चलाया था उसे देखकर शायद अमेरिका की मीडिया भी शर्मा जाती। बरखा दत्त का वह ट्वीट सभी को याद होगा जब उन्होंने हिलरी क्लिंटन के हाथों में हाथ डालकर कहा था कि And May The Best Woman Win tonight. @HillaryClinton. Like it’s even a choice! क्या कमला हैरिस भी बेस्ट वुमन हैं?
जैसा भारत में चुनाव अभियान चलता है, उससे कम बुरा अभियान अमेरिका में नहीं चलता। हाँ, लिबरल्स का अपना तय रहता है कि उन्हें किसके पक्ष में बोलना है। जब एक महिला के रूप में बरखा दत्त यह ट्वीट कर रही थीं कि भगवान करे कि बेस्ट महिला जीते, उस समय वह उन अभियानों की तरफ से आँखें मूंदे थीं जो हिलरी के समर्थकों ने ट्रंप की पत्नी मेलेनिया ट्रंप की नग्न तस्वीरें फैलाकर चलाए थे।
और क्या कारण था कि जिस पितृसत्ता का विरोध करते हुए यह लोग अघाते नहीं हैं, उसी पितृसत्ता की सबसे बड़ी उदाहरण हिलेरी क्लिंटन के पक्ष में यह सब अभियान चला रही थी? वैसे भी भारत का जो लेफ़्ट-लिबरल रहा है वह हमेशा से ही उन महिलाओं के पक्ष में खड़ा रहा है जिनके पीछे किसी बड़े और पुरुष का हाथ रहा या फिर जो किसी बड़े परिवार से आईं। जैसे राबरी देवी, सोनिया गांधी, कनिमोज़ी, प्रियंका गांधी आदि! इसी क्रम में भारत का पूरा का पूरा लेफ़्ट-लिबरल उस चुनाव में अमेरिका की हिलरी क्लिंटन का प्रचार उसी तरह करता रहा जैसे वह भारत में सोनिया गांधी का करता था। यहाँ तक कि कथित संवेदनशील लेखिकाएँ भी उसी हिलरी क्लिंटन के पक्ष में खड़ी रहीं जिन्होनें अपनी टीम के लोगों से एक स्त्री मलिना ट्रंप की नंगी तस्वीरों को रोकने के लिए भी नहीं कहा। बाक़ी नीतियों पर अंतर्राष्ट्रीय समझ रखने वाले बात करें, मैं बस स्त्री-विषयक ही बात करूंगी।
इस बार फिर से अमेरिकी चुनाव चर्चा में आ रहे हैं और एक बार फिर से भारत के लेफ़्ट-लिबरल पागल होने वाले हैं क्योंकि रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रंप के ख़िलाफ़ डेमोक्रेट पार्टी के जो बिडेन ने अपने उपराष्ट्रपति के उत्तराधिकारी के रूप में कथित भारतीय मूल की कमला हैरिस को चुना है।
कमला हैरिस की माता भारतीय थीं और उनके पिता अश्वेत अमेरिकी थे। कमला का परिचय पहली अश्वेत उत्तराधिकारी के रूप में कराया जा रहा है। भारत में लोग उनके भारतीय मूल को लेकर उत्साहित हैं जबकि यह सत्य है कि कमला हैरिस कहीं से भी भारतीय नहीं हैं और वह अक्सर अपने पिता द्वारा दी गयी पहचान पर ही गर्व करती हैं। इन्टनेट पर एक लेख बहुत ही तथ्यात्मक प्रश्न उठाता नज़र आता है कि यदि कमला हैरिस एशियाई मूल की हैं तो प्रेस उन्हें ब्लैक क्यों लेबल कर रहा है?
क्या यह सारा खेल अश्वेत वोटों का है? उससे इतर यदि भारतीय ‘स्त्रीवादियों’ के विषय में बात की जाए तो कमला हैरिस के बहाने वह फिर एक बार महिलाओं के खिलाफ खड़ी होती नज़र आ रही हैं। कमला हैरिस स्वयं को माता की पहचान के स्थान पर पिता की पहचान के साथ जोड़ती हैं। इसी के साथ वह भारत की अस्मिता के साथ जुड़े हुए जो मामले हैं उनके खिलाफ खड़ी हैं। वह धारा ३७० हटाए जाने की आलोचक हैं, वह उस धारा 370 की समर्थक हैं जिसके कारण हज़ारों दलित महिलाओं के अधिकार छीने जा रहे थे।
उससे भी कही अधिक बड़ा प्रश्न यह है कि क्या कमला हैरिस को मात्र अश्वेत होने के कारण चुना गया है? या फिर उनकी योग्यता के कारण? हाँ, इतना तय है कि भारतीय लेफ़्ट-लिबरल मीडिया की इस बार फिर से बांछें खिल गईं हैं। मगर उन्हें एक बात समझनी होगी कि मात्र महिला होने से कोई भी राजनीतिक व्यक्ति संवेदनशील नहीं होता और मात्र भारतीय मूल का होने से कोई भारतीय नहीं होता!