त्याग, तप, साधना और संयम का महापर्व चैत्र नवरात्रि 13 अप्रैल से आरंभ हो रहा है। नवरात्रि के पहले दिन विधिविधान से घट स्थापना के साथ सर्वप्रथम आदिशक्ति माँ दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप का भव्य शृंगार, पूजन किया जाता है। देवी के निमित्त अखंड ज्योति जलाकर भक्त नौ दिन के व्रत का संकल्प आज प्रातः ले चुके हैं। घरों और मन्दिरों में नौ दिनों तक श्रद्धापूर्वक माँ भगवती की पूजा-अर्चना की जा रही है। जप, तप, यज्ञ, हवन, अनुष्ठान करके भक्त महामारी से मुक्ति की कामना कर रहे हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार, नवरात्रि के साथ ही नवसंवत्सर का आरंभ भी होगा।
नवरात्रि का समापन 22 अप्रैल को होगा। कोरोनावायरस संक्रमण को देखते हुए शक्तिपीठ कल्याणी देवी, ललिता देवी,अलोपशंकरी देवी समेत सभी देवी मंदिरों में सुबह छह बजे से पट खुलने के बाद भक्त दर्शन-पूजन आरंभ कर देंगे। मंदिरों में शारीरिक दूरी के लिए गोल घेरे बनाए गए हैं। मास्क और सेनेटाइजर का भी व्यवस्था की गई है। मंदिर के प्रवेश पर भक्तों की थर्मल स्कैनिंग की जा रही है। रात 9 बजे के बाद मंदिर के पट बंद हो जाएंगे।
इस बार त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को देखते हुए मंदिरों में पुलिस व्यवस्था कम रहेगी। इसलिए पाँच-पाँच भक्तों को एक साथ दर्शन-पूजन के लिए भेजने की व्यवस्था सुनिश्चित करने का दायित्व मन्दिर प्रबन्धन का रहेगा।
नवरात्री में सर्वार्थ सिद्धि व अमृत सिद्धि योग में घटस्थापना
नवरात्रि पर सर्वार्थ सिद्धि व अमृत सिद्धि योग में घटस्थापना की जाएगी। इस बार माँ दुर्गा का अश्व पर आगमन होगा और प्रस्थान मानव के कंधों पर होगा। घटस्थापना का शुभ मुहूर्त उदया तिथि में सूर्योदय 5:43 से सुबह 8:46 बजे तक है।
चौघड़िया मुहूर्त सुबह 4:36 बजे से सुबह 6:04 बजे तक
अभीजीत मुहूर्त सुबह 11:36 बजे से दोपहर 12:24 बजे तक
घटस्थापना के लिए पूजन सामग्री
घटस्थापना के लिए कलश, सात तरह के अनाज, पवित्र स्थान की मिट्टी, गंगाजल, कलावा, आम के पत्ते, नारियल, सुपारी, अक्षत, फूल, फूलमाला, लाल कपड़ा, मिठाई, सिंदूर, दूर्वा, कपूर, हल्दी, घी, दूध आदि वस्तुएँ आवश्यक हैं।
संक्रांति का पुण्यकाल बुधवार को
14 अप्रैल अर्थात बुधवार को भोर में 4:40 बजे सूर्य मेष राशि में प्रवेश करेंगे। इसलिए संक्रांतिकाल बुधवार को होगा। इसे सतू संक्रांति भी कहते हैं। इस दिन गंगा स्नान के साथ घड़े, पंखे और सत्तू का दान देना शुभ होता है।
सात्विक आहार, विहार, व्यवहार से बढ़ेगी रोग प्रतिरोधक क्षमता
नवरात्रि में हवन, पूजन के साथ व्रत, उपवास का विशिष्ट महत्व है। इस दौरान संयमित जीवन शैली रोग प्रतिरोधक क्षमता की वृद्धि में भी सहायक होगा। वासंतिक नवरात्रि ऋतु परिवर्तन का संधिकाल होता है। इस दौरान विषाणु जनित बीमारियों का प्रजनन अधिक होता है। नवरात्रि में व्रत रहने से आत्मिक, शारीरिक और मानसिक शक्ति मिलती है। व्रत में तामसिक चीजों का त्याग कर देते हैं। आदि शक्ति के निमित्त भोजन त्याग की भावना आत्मबल प्रदान करती है। सुपाच्य आहार, विहार, व्यवहार और विचार से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
उत्तर भारत में नवरात्रि के समय माँ दुर्गा की पूजा कुछ इस प्रकार की जाती है —
1. सबसे पहले एक लकड़ी की चौकी को गंगाजल या स्वच्छ जल से धोकर पवित्र कर लें।
2. अब इसे स्वच्छ वस्त्र से पोछकर लाल कपड़ा बिछाएं।
3. चौकी की दाएँ ओर कलश रखें।
4. चौकी पर माँ दुर्गा का चित्र या उनकी प्रतिमा स्थापित करें।
5. माता रानी को लाल रंग की चुनरी ओढ़ाएँ।
6. धूप-दीपक आदि जलाकर माँ दुर्गा की पूजा करें।
7. नौ दिनों तक जलने वाली अखंड ज्योति माता रानी के सामने जलाएँ।
8. देवी मां को तिलक लगाएँ।
9. मां दुर्गा को चूड़ी, वस्त्र, सिंदूर, कुमकुम, पुष्प, हल्दी, रोली, सुहान का सामान अर्पित करें।
10. मां दु्र्गा को इत्र, फल और मिठाई अर्पित करें।
11. अब दुर्गा सप्तशती के पाठ देवी माँ के स्तोत्र, सहस्रनाम आदि का पाठ करें।
12. माँ दुर्गा की आरती उतारें।
13. अब वेदी पर बोए अनाज पर जल छिड़कें।
14. नवरात्रि के नौ दिन तक मां दुर्गा की पूजा-अर्चना करें। जौ पात्र में जल का छिड़काव करते रहें।


