इन दिनों रामानन्द सागर-कृत रामायण का पुन: प्रसारण हो रहा है। यह आश्चर्य की बात है कि आज के हिप-हॉप युवाओं के मध्य भी रामायण सबसे ज़्यादा देखे जाने वाला शो बन गया है। दूरदर्शन गदगद है। और भारत की जनता भी इस निर्णय से प्रसन्न दिखाई दे रही है। परन्तु एक बड़ा वर्ग है जो इस निर्णय से प्रसन्न नहीं है, और वह बार बार इस निर्णय के विरुद्ध बोल रहा है। उसका कहना है कि सरकार ने एक साम्प्रदायिक कदम उठाया है। मगर ऐसा क्यों? अंतत: राम के विरुद्ध इस प्रकार का वातावरण क्यों है? क्यों विदेशी सोच से प्रेरित होकर कुछ लोग राम पर ही प्रश्न उठाने लगते हैं? वैसे तो इस प्रश्न का उत्तर बहुत ही सरल है कि उन्हें राम से नहीं राम द्वारा पूरे भारत की एकता से घृणा है।
जब हम राम की बात करते हैं, या कहें कि राम तत्व की बात करते हैं, तो उसकी जड़ें वेदों से प्राप्त होती हैं। राम के विषय में यह प्रचलित है कि राम को जिसने जैसा देखा, वैसा ही लिखा। परन्तु राम इस राष्ट्र की आत्मा है, एवं यह बात उन अंग्रेजी विद्वानों को भी पता थी जिन्होनें यहाँ पर आकर रामायण और रामचरित मानस के विषय में पढ़ा और लिखा। रामायण का अंग्रेजी अनुवाद करने वाले राल्फ टी एच ग्रिफिथ इस काव्य से अत्यंत प्रभावित थे। उन्होंने यद्यपि राम को काल्पनिक कहा है, तथापि वह वाल्मीकि की रामायण की महत्ता से हैरान थे। वह इस बात से हैरान थे कि कैसे कोई एक व्यक्ति पूरे समाज को जोड़े रख सकता है। और कैसे एक व्यक्ति है जो पूरे भारत को एक सूत्र में बांधे रख सकता है? वह इस बात से हैरान थे कि कैसे एक कहानी के निशान कश्मीर से लेकर लंका तक हैं। वह भारत की विविधता को भी इस अनुवाद की प्रस्तावना में लिखते हैं।
जब वह इस रामायण की प्राचीनता की खोज में जाते हैं तो वह पाते हैं कि कालीदास के रघुवंश की प्रेरणा वाल्मीकि रामायण है और उसके बाद महाभारत रामायण के बाद की निरंतरता वाला महाकाव्य है।
परन्तु अंग्रेजी विद्वान सबसे अधिक इस तथ्य से हैरान हैं कि किस प्रकार राम और हनुमान की कथा इस विशाल भूखंड को एक रूप में जोड़े रखे हुए है। वामपंथी वर्ग चीनी यात्री फ़ा ह्येन द्वारा अयोध्या और रामायण का उल्लेख न किए जाने को लेकर रामायण की प्राचीनता पर संदेह व्यक्त करते रहे हैं एवं अभी तक करते हैं। इस पुस्तक की प्रस्तावना में यह भी लिखा है कि Royal Asiatic Society (Vol। VII। pp। 248 ff।), में अपने शोधपत्र में कर्नल साईकस का कहना है कि यह कहना फ़ा ह्येन द्वारा रामायण या अयोध्या का उल्लेख न किया जाना बहुत ही स्वाभाविक है क्योंकि वह एक बौद्ध मठों, बौद्ध मंदिरों, बौद्ध परम्पराओं एवं बौद्ध ज्ञान सिद्धांतों का अध्ययन करने आया था, और उसकी रुचि तनिक भी इससे इतर कुछ जानने की नहीं थी। तो उसने बौद्ध धर्म से परे कुछ वर्णन नहीं किया है, और इससे रामायण की प्राचीनता पर संदेह नहीं किया जा सकता है।
पूरा पश्चिमी जगत इस बात पर हैरान था कि कैसे भारत को एक ही कथा एक सूत्र में जोड़े हुए है। कैसे एक आदर्श ऐसा है जिसने पूरे भारत को सम्मोहित कर रखा है। रामायण और राम की महत्ता को भारतीयों से अधिक उन शक्तियों ने समझा जो भारत को तोड़ने वाली थीं और यही कारण था कि उन्होंने बार बार राम पर आक्रमण किया। एवं वैकल्पिक अध्ययन के नाम पर राम कथा को विकृत करने का कार्य आरम्भ किया। रामकथा को विकृत करने के माध्यम से इस देश को छिन्न-भिन्न किया जा सकता है, ऐसा पश्चिमी विचारकों को समझ आ गया था, यही कारण है कि जो जितना आधुनिक होता गया, राम से दूर होता गया। और आज कथित आधुनिक और वामपंथी समाज राम से दूर होता जा रहा है और उसीके साथ भारत से दूर होता जा रहा है। क्या हमारे आधुनिक विचारक यह चाहता है कि भारत को वैचारिक रूप से तोड़ने का सपना जो अंग्रेज अधूरा छोड़ गए थे, वह उसे पूरा करे? या भारत अपनी उस समृद्ध धरोहर से एकदम विलग हो जाए, जो केवल और केवल उसीकी है? प्रश्न कई हैं, और उत्तर भी रामायण एवं रामचरितमानस के अंग्रेजी अनुवाद की प्रस्तावना में प्राप्त होंगे।