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विष्णु मूर्ति जिसे म्लेच्छों से बचाने जलसमाधि दी गई

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जब बहमनी सुल्तान ने यहाँ के मंदिर पर आक्रमण किया तो विष्णु मूर्ति एवं शिवलिंग को म्लेच्छों द्वारा खण्डित होने से बचाने के लिए इन्हें जलसमाधि दे दी गई

अयोध्या में राम लल्ला की पुनर्स्थापना के पश्चात काशी विश्वनाथ को ध्वस्त कर औरंगज़ेब द्वारा बनवाई गई ज्ञानवापी मस्जिद में ‘व्यास के तहख़ाने’ में हिन्दू मूर्तियों की पुजा की अनुमति मिल गई। और अब कर्नाटक के रायचूर में शक्ति नगर के पास कृष्णा नदी के तल में भगवान् विष्णु और भगवान् शिव की मूर्तियाँ मिली हैं।

शताब्दियों पुरानी ये मूर्तियाँ रायचूर और तेलंगाना सीमा पर कृष्णा नदी पर एक पुल के निर्माण के दौरान मिलीं। निर्माण दल ने भगवान् विष्णु के दशावतार को दर्शाने वाली एक मूर्ति और भगवान् शिव के प्रतीक लिंग की एक अन्य मूर्ति बरामद की। आश्चर्यजनक बात यह है कि मूर्ति में विष्णु का मुखारविंद अरुण योगीराज द्वारा बनाई गई राम लल्ला के मुख जैसा है!

विष्णु की मिली मूर्ति के बारे में बोलते हुए रायचूर विश्वविद्यालय में प्राचीन इतिहास और पुरातत्व की लेक्चरार पद्मजा देसाई ने कहा कि

यह मूर्ति किसी मंदिर के गर्भगृह की शोभा रही होगी और आक्रांताओं द्वारा इसके संभावित विनाश के समय इसे नदी में गिरा दिया गया होगा।

कृष्णा नदी के जलांचल में मिली इस विष्णु मूर्ति की विशेषताओं के बारे में देसाई ने कहा कि विष्णु के चारों ओर का आभामंडल मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, राम, परशुराम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि के दशावतार को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि विष्णु को चार भुजाओं वाले के रूप में दर्शाया गया है; उनके दो ऊपरी हाथों में शंख और चक्र हैं जबकि दो निचले कटिहस्त एवं वरदहस्त की मुद्रा में हैं।

इतिहासकार ने कहा कि यह मूर्ति वेदों में वर्णित वेंकटेश्वर से मिलती जुलती है हालांकि इस मूर्ति में गरुड़ नहीं हैं जो आमतौर पर विष्णु की मूर्तियों में देखा जाता है, बल्कि पंखा थामे दो स्त्रियाँ दिख रही हैं। चूँकि माना जाता है कि विष्णु साज-सज्जा अभिषेक से प्रसन्न होते हैं, मुस्कुराते हुए विष्णु की यह मूर्ति मालाओं और आभूषणों से सुसज्जित है।

पुरातत्वविदों का मानना है कि यह मूर्ति 11वीं या 12वीं शताब्दी ईस्वी की है। जब बहमनी सुल्तान ने यहाँ के मंदिर पर आक्रमण किया तो इन मूर्तियों को म्लेच्छों द्वारा खण्डित होने से बचाने के लिए इन्हें जलसमाधि दे दी गई।

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