रथ सप्तमी इस वर्ष कल अर्थात् 16 फरवरी 2024 को मनाई जाने वाली है। माघ सप्तमी, रथ सप्तमी या रथसप्तमी माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को पड़ता है। इस तिथि में प्रतीकात्मक रूप से सूर्यदेव (ओड़िषा में सूर्यरूपी विष्णु) की पुजा होती है। यह सूर्य के जन्म का भी प्रतीक है और इसलिए इसे सूर्य जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।
रथ सप्तमी ऋतु के वसंत में परिवर्तन और फ़सल कटाई की ऋतु के आरंभ का प्रतीक है। अधिकांश भारतीय किसानों के लिए यह नए साल का शुभारंभ है। श्रद्धालु अपने घरों और पूरे भारत में सूर्य को समर्पित असंख्य मंदिरों में त्योहार मनाते हैं।
सूर्य पूजा की जड़ें हिंदू धर्म के वेदों में गहराई से निहित हैं और इसकी प्राचीनता चीन, मिस्र और मेसोपोटामिया की कई पौराणिक कथाओं से भी संबंधित है। श्रद्धालु इस अवसर पर गायत्री/सावित्री मंत्र का जाप भी करते हैं। जैसे-जैसे पौराणिक हिंदू धर्म विकसित हुआ, सूर्य की पूजा को समेकित किया गया।
ऋग्वेद मंडल 10 के भजन 85 में सूर्यदेव की दुल्हन के दो घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले रथ पर बैठे होने का उल्लेख है।
रथ सप्तमी की कथा का भौगोलिक तात्पर्य
रथ सप्तमी प्रतीकात्मक रूप से सूर्यदेव की विशेष तिथि है। इस तिथि को सूर्य सात घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले अपने रथ को सारथी अरुणा के साथ उत्तरी गोलार्ध की ओर उत्तर-पूर्व दिशा में मोड़ते हैं। रथ और उसपर सवार सात घोड़ों का प्रतीकात्मक महत्व यह है कि यह इंद्रधनुष के सात रंगों का प्रतिनिधित्व करता है।
सात घोड़े सूर्यदेव के दिन रविवार से शुरू होने वाले सप्ताह के सात दिनों का प्रतिनिधित्व भी करते हैं।
रथ में 12 पहिये हैं जो राशि चक्र (360 डिग्री) के 12 संकेतों (प्रत्येक 30 डिग्री) का प्रतिनिधित्व करते हैं और एक पूर्ण वर्ष का निर्माण करते हैं जिसे संवत्सर कहा जाता है। सूर्य का अपना कक्ष सिंह (सिम्हा) है और वह हर महीने एक कक्ष से दूसरे कक्ष में जाता है और कुल चक्र को पूरा होने में 365 दिन लगते हैं।
रथ सप्तमी त्योहार सूर्यदेव से ऊर्जा और प्रकाश के उदार ब्रह्मांडीय प्रसार की प्रार्थना हेतु मनाया जाता है। रथ सप्तमी पूरे दक्षिण भारत में तापमान में क्रमिक वृद्धि का भी प्रतीक है। यह वसंत के आगमन का प्रतीक है जिसे इसके पश्चात गुड़ी पड़वा, उगादि या चैत्र के महीने में हिंदू चंद्र नव वर्ष के त्योहार के रूप में मनाया जाता है।
रथ सप्तमी ऋषि कश्यप और उनकी पत्नी अदिति के घर सूर्य के जन्म का भी प्रतीक है और इसलिए इसे सूर्य जयंती (सूर्य भगवान का जन्मदिन) के रूप में मनाया जाता है।
रथ सप्तमी से जुड़ी कथा
कम्बोज साम्राज्य के राजा यशोवर्मा द्वारा एक किंवदंती सुनाई जाती है। वे एक महान राजा थे पर उनका कोई उत्तराधिकारी नहीं था। ईश्वर से उनकी विशेष प्रार्थना में उन्हें एक पुत्र का वरदान मिला। पर यह राजा की समस्याओं का अंत नहीं था; उनका पुत्र किसी असाध्य रोग से ग्रसित था।
राजा से मिलने आए एक संत ने परामर्श दिया कि उनके बेटे को अपने पिछले पापों से छुटकारा पाने के लिए श्रद्धा के साथ रथ सप्तमी पूजा करनी होगी। जब राजा के बेटे ने ऐसा किया तो उसका स्वास्थ्य ठीक हो गया और स्वयं राजा बनने पर उसने अपने राज्य पर अच्छे से शासन किया।
इन स्थानों में मनता है रथ सप्तमी का पर्व
पूरे भारत में जहाँ भी सूर्य मंदिर है, वहीं रथ सप्तमी उत्साहपूर्वक मनाई जाती है। सबसे प्रसिद्ध विश्व धरोहर स्थल ओडिशा में कोणार्क सूर्य मंदिर है। कोणार्क के अलावा ओडिशा में एक और सूर्य मंदिर है गंजम ज़िले के बुगुडा का बिरंचीनारायण मंदिर।
गुजरात के मोढेरा में चौलुक्य वंश के राजा भीमदेव द्वारा निर्मित, आंध्र प्रदेश के अरासवल्ली में और तमिलनाडु और असम में भी नवग्रह मंदिरों के समूहों में सूर्य मंदिर हैं। जम्मू और कश्मीर-स्थित मार्तंड का सूर्य मंदिर और मुल्तान का सूर्य मंदिर ऐसे मंदिर हैं जो अतीत में मुसलमान आक्रांताओं ने नष्ट कर दिए।
क्यों मनाएँ, कैसे मनाएँ
इस दिन आमतौर पर सूर्य के रूप में विष्णु की पूजा की जाती है। अधिकांश रथसप्तमी का आरंभ घरों में शुद्धिकरण स्नान (नदी या समुद्र में भी स्नान किया जाता है) के साथ होती है जिसमें स्नान करते समय अपने सिर पर कई अर्क (संस्कृत)/एक्का (कन्नड़)/जिल्लेडु (तेलुगु)/ एरुक्कु (तमिल)/bowstring hemp (English) (Calotropis gigantea) के पत्ते रखे जाते हैं।
एक श्लोक पढ़ा जाता है जो देवता की उदारता का आह्वान करता है जिससे वह सबकुछ जो श्रद्धालु शेष वर्ष में करे, वह सुचारु रूप से घटित व फलित हो।
संस्कृत का शब्द “अर्क” सूर्य का पर्याय है। सूर्यदेव के लिए इसके महत्व की तुलना विष्णु के लिए तुलसी (Ocimum tenuiflorum) के पत्तों के महत्व से की जा सकती है।
अर्क के पत्तों का उपयोग भगवान गणेश की पूजा के लिए भी किया जाता है जिन्हें अर्क गणेश के नाम से जाना जाता है और हनुमान् पूजा के लिए भी। समिधा (लकड़ी की बलि) नाम के इसके तने का उपयोग यज्ञ अनुष्ठान में अग्नि में आहुति के लिए होता है। इसका आकार सूर्यदेवता के कंधों और रथ का प्रतिनिधित्व करता है। आनुष्ठानिक स्नान के समय इसके उपयोग में सात पत्तियाँ रखी जाती हैं — एक शीश पर, दो कंधों पर, दो घुटनों पर और दो पैरों पर।
इस दिन सूर्यदेव को अर्घ्य या तर्पण अर्पित किया जाता है और साथ ही सूर्यदेव का भजन-कीर्तन किया जाता है। फिर नैवेद्य अनुष्ठान के साथ पूजा की जाती है और देव को फूल और फल चढ़ाया जाता है।
इस अवसर पर सूर्यदेव को दी जाने वाली महत्वपूर्ण प्रार्थनाएँ ये हैं —
- आदित्यहृदयम्
- गायत्री
- सूर्याष्टकम
- सूर्य सहस्रनाम
पूजा का उचित समय सूर्योदय के बाद एक घंटे के भीतर है। मैसूर और मेलकोटे झाँकियों में सूर्य मंडल ले जाया जाता है।
क्षेत्रीय प्रथाएँ
इस दिन दक्षिण भारत में कोलम को रथ सप्तमी के प्रतीक के रूप में एक रथ और सात घोड़ों को चित्रित करते हुए रंगीन चावल के चूर्ण से बनाया जाता है। चित्रण के केंद्र में गाय के गोबर के उपले जलाए जाते हैं और आग पर उबाला हुआ दूध सूर्यदेव को अर्पित किया जाता है।
तिरुमला, श्रीरंगम, श्रीरंगपट्टन और मेलुकोटे जैसे कुछ महत्वपूर्ण वैष्णव मंदिरों में रथ सप्तमी वर्ष के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है।
मैंगलुरु में श्रीवेंकटरमण मंदिर के वीर वेंकटेश की रथ यात्रा इस दिन आयोजित की जाती है और इसे कोडियाल तेरु या मंगलुरु रथोत्सव के नाम से जाना जाता है।
रथ सप्तमी पर तिरुमला में एक दिवसीय ब्रह्मोत्सव आयोजित किया जाता है। इस दिन मलयप्पा स्वामी के इष्टदेव, उनकी दिव्य पत्नी श्रीदेवी और भूदेवी की मूर्तियों को तिरुमला की झाँकी वाली सड़कों पर ले जाया जाता है। प्रतिमाएँ सात अलग-अलग वाहनों पर श्रीवेंकटेश्वर के मंदिर की परिक्रमा करती हैं।
2024 की रथ सप्तमी
आइए जानते हैं इस बार की रथ सप्तमी के प्रमुख क्षणों को।
- वाहन सेवा सूर्यप्रभा वाहन के साथ सुबह 05:30 बजे से 08:00 बजे के बीच शुरू होती है जब सूर्य की पहली किरणें सुबह 06:40 बजे श्री मलयप्पा स्वामी पर पड़ती हैं
- चिन्नशेष वाहन सुबह 9:00 बजे से 10:00 बजे तक चलेगा
- गरुड़ वाहन सुबह 11 बजे से दोपहर 12 बजे तक चलेगा
- हनुमंत वाहन की सवारी दोपहर 01:00 बजे से 02:00 बजे तक शुरू होगी
- चक्रस्नान दोपहर 02:00 बजे से शुरू होकर 03:00 बजे तक चलेगा
- कल्पवृक्ष वाहन शाम 04:00 बजे से शाम 05:00 बजे तक शुरू होने जा रहा है
- सर्वभूपाल वाहन सवारी शाम 06:00 बजे से शाम 07:00 बजे तक चलेगी
- चंद्रप्रभा वाहन पर अंतिम सवारी रात्रि 08:00 बजे से प्रारंभ होकर रात्रि 09:00 बजे तक चलेगी
जो भक्त रथ सप्तमी के दिन मंदिर जाने के इच्छुक हैं, उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि रथ सप्तमी की झाँकी और उत्सव के कारण इस बार कल्याणोत्सव, उंजल सेवा, अर्जित ब्रह्मोत्सव और सहस्र दीपालंकार सेवा जैसी अरिजित सेवाएँ प्रबंधन द्वारा रद्द कर दिए गए हैं, परंतु सुप्रभात, तोमल और अर्चना का प्रदर्शन एकांतम् में किया जाएगा और देवताओं की झाँकी पूरे दिन विभिन्न वाहकों पर चार माडा सड़कों पर चलेगी।