मुझे याद नहीं कि कभी नरेन्द्र मोदी ने बाल ठाकरे, प्रवीण तोगड़िया, उमा भारती या योगी आदित्यनाथ जैसी तल्ख भाषा का प्रयोग किया हो। मसलन, फूंक दिया जायेगा, ध्वस्त कर दिया जायेगा, ठोक दिया जायेगा। लेकिन संयोग देखिए, कैसे मोदी हिन्दू-हृदय सम्राट बन गये।
गोधरा का दंगा एक दंगा भर था, जैसे सभी दंगे हुआ करते हैं। जाहिर तौर पर इसमें भी सरकारी मशीनरी का दुरूपपयोग हुआ होगा। चूंकि बलवाई भीड़ उन्मादग्रस्त होकर ऐसे कृत्य करती है कि प्रशासन पंगु हो जाता है, तो इसमें भी उसी मनोविज्ञान की पुनरावृत्ति हुई।
संघ और बीजेपी से बावस्ता लोग जानते हैं कि नरेन्द्र मोदी में हिन्दुत्व की वह चिंगारी नहीं है जो शोला बनकर भड़क सके। खुद मेरी नज़र में नरेन्द्र मोदी संघ के एक अंतर्मुखी स्वभाव वाले प्रतिबद्ध कार्यकर्ता भर थे। याद करिए आप उस घनी काली दाढ़ी और अश्वेत बालों वाले, संयत नरेन्द्र मोदी को, जो कभी भाजपा की बात रखने दूरदर्शन पर नमूदार होता था।
यह नियति का विधान था कि जब नरेन्द्र मोदी गुजरात के सीएम बने उसी वक़्त गोधरा का दंगा हो गया। और उनके सिर पर हिन्दू-हित का ताज रख दिया गया। जबकि उनका स्वभाव इसके विपरीत उदारवादी था।
गोधरा के बाद गरम-दल हिन्दुओं ने मोदी को हाथी पर बिठा दिया और यह उम्मीद करने लगे कि यही दुष्ट-दलन करेगा। लेकिन मोदी की दशा उस भीरू महावत जैसी हो गयी जो उन्मत्त हाथी को देखकर भयाक्रांत हो जाता है और तीक्ष्ण अंकुश से जय-जयकार करने वालों को हीं गोदने लगता है।
मोदी के प्रधानमंत्री बनते हीं कांग्रेसियों को मिर्गी का दौरा पड़ने लगा और वामपंथ के छोटे-छोटे शिविरों में सन्निपात की आमद हुई। सब एक तंबू के नीचे इकट्ठे हुये और चिल्लाने लगे ― फासीवाद आला रे आला! लोकतंत्र गेला रे गेला! अब तो इस देश के दलितों को रोहिंग्या बनाया जायेगा! शांतिदूत मुसलमान भाइयों को जिबह किया जायेगा।
विरोधियों के इस प्रपंच, दुष्प्रचार और कौवारोर में संघी फूलकर कुप्पा हो गये और हिन्दू ह्रदय सम्राट कंफ्यूज़। नरेन्द्र भाई ने कसम ले ली भूलकर भी अयोध्या नहीं जाऊंगा। बाप रे बाप!
सनद रहे मोदी को हिन्दू-हृदय सम्राट संघियों और हिन्दुओं ने नहीं, सेक्यूलरों और मुसलमानों ने बनाया था। संघियों में ऐसी कला का लेशमात्र कौशल नहीं है। जैसे कोई छोटा बच्चा पेंसिल से भूत बनाता है और खुद डरकर औरों को भी डराने का स्वांग रचता है। बहरहाल, नये साल के आग़ाज़ में मोदी ने अपना और हिन्दुत्व का भी ज्वार उतार दिया।
अब मैं उम्मीद कर रहा था कि संवेदनशील कवि, बुद्धिजीवी, पत्रकार और गंगा-जमुनी पैरोकार मोदी जी को बधाई देंगे कि माननीय, आपने ब्राह्मणवादी पारे और आरे से दलितों की रक्षा की, राम को भुलाकर साईं राम को गले लगाया, अपनी बीवी की परवाह न करके सलमा की रिहाई को तवज्जो दी लेकिन ये क्या? ये सब तो मसखरे हैं, दया-हया छोड़कर पूछ रहे हैं ― मंदिर कब बनेगा? कट्टर हिन्दुओं से ज्यादा उबाल तो इनके लहू में दिख रहा है। ये वहीं डरे हुये लोग हैं, 2014 में जिनके कान फौजी बूटों की आहट, गड़गड़ाहट से बहरे हो रहे थे।