उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा राज्य की विधानसभा में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code या UCC) विधेयक पेश किए जाने के तुरंत बाद समाजवादी पार्टी के सांसद एसटी हसन ने मंगलवार को कहा कि यह संहिता क़ुरान के सिद्धांतों के ख़िलाफ़ है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने भी इस क़ानून की आलोचना यह कहते हुए की कि अगर यह क़ुरान में मुसलमानों को दी गई हिदायत (निर्देश) के ख़िलाफ़ है तो हम विधेयक का पालन नहीं करेंगे। अगर यह ‘हिदायत’ के अनुरूप है तो हमें कोई समस्या नहीं है।
AIMPLB कार्यकारी सदस्य मौलाना ख़ालिद रशीद फ़िरंगी महली ने कहा कि कुछ समुदायों को इससे छूट दी जाएगी।
क्या UCC आने पर सभी क़ानूनों में एकरूपता होगी? नहीं, बिल्कुल भी एकरूपता नहीं होगी। जब आपने कुछ समुदायों को इससे छूट दी है तो एकरूपता कैसे हो सकती है? हमारी क़ानूनी समिति अध्ययन करेगी ‘मसौदा तैयार किया जाएगा और उसके अनुसार निर्णय लिया जाएगा।
मौलाना ख़ालिद रशीद फ़िरंगी महली का बयान
UCC विधेयक का वादा भारतीय जनता पार्टी ने 2022 के उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में किया था। जब विधेयक क़ानून बन जाएगा, तो यह विवाह, तलाक, विरासत आदि को नियंत्रित करने वाले व्यक्तिगत धार्मिक क़ानूनों की जगह ले लेगा।
राज्य विधानसभा में भाजपा के स्पष्ट बहुमत के कारण विधेयक पारित होने की उम्मीद है।
कांग्रेस ‘UCC के ख़िलाफ़ नहीं’
कांग्रेस ने आज कहा कि वह UCC के विरुद्ध नहीं है, लेकिन इसे जिस तरह से पेश किया जा रहा है, इसके ख़िलाफ़ है। उत्तराखंड विधानसभा में विपक्ष के नेता यशपाल ने कहा कि —
हम इस (UCC) के ख़िलाफ़ नहीं हैं। सदन कार्य संचालन के नियमों से चलता है लेकिन भाजपा लगातार उनकी अनदेखी कर रही है और संख्या बल के आधार पर विधायकों की आवाज़ को दबाना चाहती है। विधायकों को प्रश्नकाल के दौरान सदन में अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार है, चाहे उनके पास 58वाँ नियम या अन्य नियमों के तहत कोई प्रस्ताव हो, उन्हें विधानसभा में राज्य के विभिन्न मुद्दों पर अपनी आवाज उठाने का अधिकार है।
उत्तराखंड विधानसभा में विपक्ष के नेता यशपाल का बयान
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता हरीश रावत ने कहा कि राज्य सरकार और मुख्यमंत्री विधेयक पारित करने की उत्तेजना में नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि किसी के पास मसौदे की प्रति नहीं है और वे इस पर तत्काल चर्चा चाहते हैं। केंद्र सरकार उत्तराखंड जैसे संवेदनशील राज्य का इस्तेमाल प्रतीकात्मकता के लिए कर रही है। अगर वे UCC लाना चाहते हैं तो इसे केंद्र सरकार द्वारा लाया जाना चाहिए था।